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  • लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    वैदिक राज्य व्यवस्थान में राजतंत्र न होकर गणतांत्रिक व्यवस्था थी। लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। लोकतंत्र की धारणा वैदिक युग की ही देन है। महाभारत और बौद्ध काल में भी गणराज्य थे। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।

    ऋग्वेद में सभा मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही किसी  भी विषय या नेतृत्व कौन करे इस पर  वार्तालाप बहस होने के बाद बहुमत से निर्णय अर्थात फैसला होता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था।

    भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। दशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं का युद्ध या दशराजन युद्ध एक युद्ध था जिसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है।

    ।। त्रीणि राजाना विदथें परि विश्वानि भूषथ: ।।-ऋग्वेद मं-3 सू-38-6

    भावार्थ : ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिल के सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धि कारक राज्य के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा अर्थात- विद्यार्य्यसभा, धर्मार्य्य सभा, राजार्य्यसभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वतंत्रता, धर्म, सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।

    ।। तं सभा च समितिश्च सेना च ।1।- अथर्व-कां-15 अनु-2,9, मं-2

    भावार्थ: उस राज धर्म को तीनों सभा संग्राम आदि की व्यवस्था और सेना मिलकर पालन करें।

    1.सभा : धर्म संघ की धर्मसभा, शिक्षा संघ की विद्या सभा और राज्यों की राज्य सभा।

    2.समिति : समिति जन साधरण की संस्था है। सभा गुरुजनों की संस्था अर्थात गुणिजनों की संस्था।

    3.प्रशासन : न्याय, सैन्य, वित्त आदि ये प्रशासनिक, पदाधिकारियों, के विभागों के नाम है। जो राजा या सम्राट के अधिन है।
     

    राजा : राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए ही सभा ओर समिति है जो राजा को पदस्थ और अपदस्थ कर सकती है। वैदिक काल में राजा पद पैतृक था किंतु कभी-कभी संघ द्वारा उसे हटाकर दूसरे का निर्वाचन भी किया जाता था। जो राजा निरंकुश होते थे वे अवैदिक तथा संघ के अधिन नहीं रहने वाले थे। ऐसे राजा के लिए दंड का प्रावधान होता है। राजा ही आज का प्रधान है।

    प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथमं सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध

    विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अजिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ।। (ऋक–२-२१-१) एवा वस्व इन्द्रः सत्य. सम्रान्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. । पुरष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य । (ऋक् — ४-२१-१०)

              विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नूजित उबंराजिते ।

    अश्वजिते गोजिते अल्जिते भरेन्द्राय सोम॑ यजताथ हर्यंतम्‌ ॥

    (ऋकू–रर२१-१)

    एवा वस्व इन्द्र: सत्य. सम्नाड्हस्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. ।

    दुरष्ट्त क्रद्ना न: शग्धि रायों भक्षीय तेश्वसों देव्यस्य ॥।

    (कक ब-र-१०)

    पाश्चात्य विद्वानों ने संसार की सबसे महान्‌ और प्राचीन पुस्तक “’ऋग्वेद’ और

    उसके परिवार दे 4, «मीय ग्रंथों का अनुशीलन करके हमारी ऐतिहासिक स्थिति को बतलाने की चेष्टा की है, और उनका यह स्तुत्य प्रयत्न बहुत दिनों से हो रहा है । कितु इस ऐतिहासिक खोज से हमारे भारतीय इतिहास की सामग्री एकत्रित करने में बहुत-सी सहायता मिली है उसी के साथ अपूर्ण अनुसंघानो के कारण और किसी अंश में सेमेटिक प्राचीन धर्म पुस्तक (06 ’68/80060/) के ऐतिहासिक विवरणों को मानदण्ड मान लेने से बहुत-सी श्रांत कल्पनायें भी चल पडी है ।

    बहुत दिनों त पहले, ईसा के २००० वर्ष पूर्वे का समय ही सृष्टि के प्रागू ऐतिहासिक काल को भी अपनी परिधि में ले आता था । क्योंकि ईसा से २००० वर्ष पूर्व जलप्रलय का होना माना जाता था और सृष्टि के आरंभ से २००० वेषें के अनन्तर जल-प्रलय का समय निर्धारित था-इस प्रकार ईसा से ४००० वर्ष पहले सृष्टि का आरंभ माना जाता था । बहुत संभव है कि इसका कारण वही अन्तनिहित घामिक प्रेरणा रही हो जो उन शोधकों के हृदय मे बद्धमुल थी । प्राय: इसी के वशवर्त्ती होकर बहुत से प्रकांडपण्डितों ने भी, ,ऋग्वेद के समय-निर्धारण मे संकीण॑ता का परिचय दिया है। हुष॑

    का विषय है कि प्रत्नततत्व और भूग्भ शास्त्र के नये-नये अन्वेषणों और आविष्कारों १. आर्यावत्त और प्रथम सम्राट इन्द्र ‘कोशोत्सव स्मारक संग्रह’ मे सबत्‌ १९८५ में हुआ और ‘दाशराज्ञ युदध’ गंगा के दे ंक में पोष संवत्‌ १९८८ में प्रकाशित हुआ । उमभय निबन्ध भायें संस्कृति के आरम्भिक अध्यायो पर एकतान चिन्तन की फलकश्रृति में प्रस्तुत है-सुतरा क्रमबद्ध रूप से एकीकृत किया गया है। (सं ) प्राचीन आर्यावत्त-प्रथम सम्राट इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध : १०९

    इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। राजतन्त्र को समाप्त कर पुनः लोकतंत्र की बहाली का पुण्य कार्य दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र दुष्यंत ने ही किया।

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